मेरी कलम Podcast Por  arte de portada

मेरी कलम

मेरी कलम

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Acerca de esta escucha

वो खुद लयबद्ध रह कर,

मुझे शब्दबद्ध करती,

अपने बारे ने कुछ ना बताती,

मेरे हर राज़ जगभर कहती।।

मेरी ढाल बनती, बनती तलवार कभी,

मेरा ही मुझपर लुटाती, वो प्यार कभी,

चन्द्र सी शीत, सूर्य सी ओज कभी,

तारको सी श्वेत, प्रदिप्त कभी।।

एक रोशनी,

मेरे अंतर का अंधकार मिटाती,

मुझे सही राह दिखाती,

हसीन हुस्न कहा कोई,

जो हम से दिल लगाए,

कलम है मेरी,

जो मुझपर प्यार लुटाए।।


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