
किताब किस्से और कहानियाँ: रेवोलुशनरीज़ (क्रांतिकारी)। kitab, kisse aur kahaniyan: Revolutionaries
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को अक्सर हम अहिंसक मानते हैं। लेकिन ऐसा है नहीं। स्वतंत्रता संग्राम में सन 1857 से लेकर 1946 तक के 89 वर्षों में अनेक ऐसे क्रांतिकारी हुए जिन्होंने भारत को आज़ाद कराने के लिए हिंसक रास्ते अपनाए उसकी तैयारी की, हथियार जुटाए और उन्हें अंजाम भी दिया। उनकी ज़्यादातर कोशिशें नाकाम हुईं। मुखबिरों और विश्वासघातियों के कारण वे हज़ारों बार छले गए। धन और आम जनता के असहयोग और उदासीनता के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। चूँकि उन्होंने हथियार उठाए और अक्सर विफल रहे इसलिए उनकी मृत्यु निश्चित हो गई। स्वतंत्रता मिलने तक करीब करीब सभी हिंसक क्रांतिकारी और सेना से विद्रोह करके आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल होने वाले और नौसेना में विद्रोह करने वाले नौसैनिक थक कर टूट चुके थे। उनकी अनुपस्थिति या अप्रासंगिकता के कारण उनकी कहानी अनकही ही रह गई। उसी अनकही कहानी को संजीव सान्याल ने सुव्यवस्थित तरीके से बताने की कोशिश की है। उनका कहना है की हमारे मानसपटल पर ये बात छाप दी गई है की हमें आज़ादी अहिंसक तरीके से मिली और ये हिंसक क्रांतिकारी इस कहानी में क्षेपक की तरह कभी कभी छिटपुट घटनाएं करते रहते थे। लेकिन ये सत्य नहीं है। हिंसक क्रांति का इतिहास भी बहुत समृद्ध है और उसकी परिकल्पना, उसकी विचारधारा और अंत में उसके क्रियान्वयन में गहरा तालमेल है जो दशकों तक बड़े संगठित रूप से चला है।